त्रिगुणोंका निर्माण हो तुम, महाभूतोंका संचार हो तुम |
इंद्रियोंका व्यापार हो तुम, पच्चीस तत्वोंका निर्वाण हो तुम ||१||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
सृष्टी की रचना हो तुम, माया की वंचना हो तुम |
शिव की धारणा हो तुम, जीव की कल्पना हो तुम ||२||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
ब्रह्मा का उन्मीलन तुम, विष्णु का सम्मीलन तुम |
शंभू का निर्दालन तुम, ईश्वर का उच्चारण तुम ||३||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
संचित का ज्वलन हो तुम, प्रारब्ध का हवन भी तुम |
क्रियमाण का अर्पण तुम, भवसागर का आचमन हो तुम ||४||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
स्थूल का अस्तित्व तुम, सूक्ष्म का गंतव्य तुम |
कारण का भास्यत्व तुम, महाकारण का वास्तव्य तुम ||५||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
भूत का फुत्कार हो तुम, भविष्य की चीत्कार हो तुम |
वर्तमान का डंका तुम, त्रिकालाबाधित नि:शंका तुम ||६||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
मत्स्य का विस्तारण तुम, कूर्म की मजधार भी तुम |
वराह का संहारण तुम, नरसिम्हा की गर्जना हो तुम ||७||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
वामन का आवाहन तुम, परशु का शरणाहन तुम |
बुध्द का आक्रन्दन तुम, कबीर का स्वच्छंदन तुम ।।८।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम ।
सीता का पावित्र्य तुम, लक्ष्मण का स्वाभिमान हो तुम,
दशरथ का विरह भी तुम, राम की निष्ठा हो तुम ।।९।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम ।
दशरथ का विरह भी तुम, राम की निष्ठा हो तुम ।।९।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम ।
राधा की मुसकान हो तुम, मीरा का विश्वास हो तुम |
यशोदा का दुल्हार हो तुम, कृष्ण की लीला भी तुम ।।१०।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
यशोदा का दुल्हार हो तुम, कृष्ण की लीला भी तुम ।।१०।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
भास्कर की तप्तता हो तुम, शशी का सौहार्द तुम ।
पर्वतोंकी गंभीरता तुम, झरनोंकी चंचलता तुम |।११।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम ।
पर्वतोंकी गंभीरता तुम, झरनोंकी चंचलता तुम |।११।।
कैसे बताऊँ कौन हो तुम ।
पंखोंका गुंजारव तुम, पौधोंकी ललकार हो तुम
प्राणिमात्र का आलाप हो तुम, मनुष्य का वार्तालाप भी तुम ||१२।|
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
बलभीम का साहस हो तुम, भागीरथी का प्रवाह तुम |
दत्तू का दृष्टीकोन भी तुम, तनुजा की हृदय में बसे माधुरी का स्वानुभव हो तुम ||१३||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
प्राणिमात्र का आलाप हो तुम, मनुष्य का वार्तालाप भी तुम ||१२।|
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
बलभीम का साहस हो तुम, भागीरथी का प्रवाह तुम |
दत्तू का दृष्टीकोन भी तुम, तनुजा की हृदय में बसे माधुरी का स्वानुभव हो तुम ||१३||
कैसे बताऊँ कौन हो तुम |
तनुजा सावंत
17 comments:
Very beautifully explained....
Khub Chan!!!
Khub Chan!!!
beautifully written!!
बठीया बहुत खुब
Khupach chhan
वा तनुजा... क्या बात है ...अध्यात्मिक आशय नव्या पिढीच्या भाषेत मांडला आहेस ...गुरुदेव खूप वेगळ्या उंचीने काम करवून घेतात हेच खरे ...
khup mast aahe
khup mast aahe
Khup chan mandlay
गुरुदेवांचे व्यापकत्व वेगवेगळ्या रूपा ने सुंदर मांडले आहे
Very Nice!Beautiful...Liked it very much!
एकदम कडक
Last lines... Ek number!!!
Khup sundar kavya rachana . Gurudevanchya shabdavar
rahilyas vibhutv baghnyach drishticon yeto,swanibhuti yete.
S.M.J.
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